Saturday 2 July 2016

Gau Rakshak Puraskar (Cow Protector Awards)


First time honor to cow protectors in India by "Gau Rakshak Samman Puraskar". it's very big event and closely connected to Hinduism .
यह सम्मान पत्र किसी स्टेज से नहीं दिया जा रहा है बल्कि यह अवार्डी के घर जाकर दिया जाता है जिसको पुरस्कार समिति ने चयनित किया है। हमारा उदेश्य जयादा से जयादा लोगों को इस बात का अहसास करवाना है कि उनके दवारा किये गए गौ सेवा के कार्य को कभी भी अनदेखा नहीं किया जायेगा।

Certficate Distribution









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Cow Protection Movement





What is Bhartiya Gau Raksha Dal?

The Bhartiya Gau Raksha Dal was incorporated in the India, March 2010, non-profit, tax-exempt organization. Sh Pawan Pandit and Sh. Naveen Sharma are its managing directors.

Bhartiya Gau Raksha Dal Mission Statement

Bhartiya Gau Raksha Dal's primary concern is to present alternatives to agricultural practices that support and depend upon the meat industry's slaughter of innocent animals, specifically the cow. To this end, Bhartiya Gau Raksha Dal presents the practices and philosophy of compassionate cow protection which includes training oxen (male cows or steers) to replace farm machinery and thereby show an alternative to their slaughter. The tenets of cow protection are universal and nonsectarian, available to all regardless of race, creed, or nationality.

Bhartiya Gau Raksha Dal Activities

Cow Protection Classes/Seminars

Classes/Seminars are given in living classroom settings involving hands-on instruction. Traditional classroom educational settings are also available. Please contact us if you wish to partake in such a seminar or wish to have one in your area.

Training Teamsters and Oxen

Teamsters and oxen are trained either individually or in group settings. At the Bhartiya Gau Raksha Dal  Farm there are trained ox teams available for the training of students.

Bhartiya Gau Raksha Dal Farm

Bhartiya Gau Raksha Dal's headquarter is in New Delhi, INDIA, provides a setting for a protected herd of 65 cows, seminars, hands-on instruction, Bhartiya Gau Raksha Dal's office, ox-power and life centered on the land and cows. Guests are welcome for scheduled tours and events. A cabin is available for temporary residence of volunteers, trainees and members.

Team Members






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Swadeshi Abhiyan

The Swadeshi movement, part of the Indian independence movement and the developing Indian nationalism, was an economic strategy aimed at removing the British Empire from power and improving economic conditions in India by following the principles of swadeshi , which had some success. Strategies of the Swadeshi movement involved boycotting British products and the revival of domestic products and production processes.
  • 1850 to 1904: developed by leaders like Dadabhai Naoroji, Gokhale, Ranade, Tilak, G.V. Joshi.
  • 1905 to 1917: Began with and because of the partition of Bengal in 1905 by Lord Curzon.
  • 1918 to 1947: Swadeshi thought shaped by Gandhi, accompanied by the rise of Indian industrialists.
  • 1948 to 1991: Widespread curbs on international and inter-state trade. India became a bastion of obsolete technology during the licence-permit raj.
  • 1991 onwards: liberalization and globalization. Foreign capital, foreign technology, and many foreign goods are not excluded and doctrine of export-led growth resulted in modern industrialism.
The second Swadeshi movement started with the partition of Bengal by the Viceroy of India, Lord Curzon 1905 and continued up to 1911. It was the most successful of the pre-Gandhian movement . Its chief architects were Aurobindo Ghosh, Lokmanya Bal Gangadhar Tilak, Bipin Chandra Pal and Lala Lajpat Rai, V. O. Chidambaram Pillai, Babu Genu. Swadeshi, as a strategy, was a key focus of Mahatma Gandhi, who described it as the soul of Swaraj (self rule). It was strongest in Bengal and was also called vandemataram movement. Gandhi, at the time of the actual movement, remained loyal to the British Crown.
The Third Swadeshi Abhiyan Started in 20th century and the movement is continues. the main faces of the movement  are Sondekoppa Ramachandra Shastri Ramaswamy (S. R. Ramaswamy), Rajiv Dixit, Swami Ramdev and Pawan Pandit.




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Wednesday 14 October 2015

मेरे लिए स्वराज " स्वयं पर सिर्फ स्वयं की हुकूमत है ,बिना किसी अन्य के प्रभाव में जीने का एक आजाद ख्याल है , एक सम्पूर्ण आजादी का अहसास है । केवल एक कानून नहीं।



कि तारीफे बहुत हुवी , मुझे हकीकत में रहने दो ,मत उछालो आसमा में ,मुझे जमी पे रहने दो। .
तरस मत खा मेरे हाल पर , बस मुझे इसी हाल में रहने दो। घुट रहा हूँ तेरी दुनियां में ,मुझे मेरी दुनिया भी जीने दो।


मैं स्वराज की बात करना चाहता हूँ। जिसके बारे में एक सदी से देश भर में चर्चाएं हो रही हैं। लेकिन किस दिशा में , कभी स्वराज आंदोलन होता है ,कभी स्वराज अभियान तो कभी स्वराज किसका ये लड़ाई होती हैं लेकिन हर बार बात यही होती हैं की हमें स्वराज कानून चाहिए ,


दोस्तों इस देश में कानून बहुत है , हमें एक और कानून मिल जायेगा तो क्या हो जायेगा। लेकिन मेरे लिए स्वराज " स्वयं पर सिर्फ स्वयं की हुकूमत है ,बिना किसी अन्य के प्रभाव में जीने का एक आजाद ख्याल है , एक सम्पूर्ण आजादी का अहसास है । केवल एक कानून नहीं। 

लेकिन हर बार देश में एक अलग अलग कानून की मांग लेकर लोग आवाज उठाते है और आंदोलन के नाम पर , बदलाव के नाम पर शोहरत पाकर जैसे कहीं अपना पेशा ही बदल लेते हों। एक बार एक आदमी आकर कहता है की लोकपाल की जरूरत है , फिर दूसरा आकर कहता है की आम आदमी को ताकवर होने की जरूरत है , फिर एक आकर कहता है की सबके विकास की जरूत है और हर बार देश का आम आदमी हर आवाज को अपनी पूरी ताकत देता हैं , लेकिन आम आदमी हर बार वहीँ होता हैं। मुझे लगता है हमे सिर्फ खुद के प्रभाव से जीने की जरूरत है ,एक सामाजिक और मानसिक आजादी की जरूत है इसीलिए स्वराज की जरूरत है। हमारे नाम से खाश बनने वालों और हमारी ताकत से अपनी ताकत बढ़ाने वालों के लिए खुद को बदलने की जरूरत है। 

मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ की बहुत सारी ऐसी बातें हैं जिनको सिर्फ समाज की सोच और स्वराज संवाद ही बदल सकता है।

क्यूंकि जब हम कुछ गलत होते देखते है और उसे बदला जा सकता है , तो किसी न किसी को तो सामने आना पड़ता है , फिर ये फर्क नहीं पड़ता की उसका अंजाम क्या होगा। हम माने या माने लेकिन हम एक रेपिस्ट और एसिड अटकर की शादी बड़ी धूम से करते हैं और इसी समाज से उसको लड़की देतें हैं ये जानते हुवे की इसने जो किया है वो क़त्ल से कहीं बड़ा गुनाह है. अब सोचिए ! हमें क्या चाहिए।






भारतीय गौ रक्षा दल समस्त गौ पुत्रों एवं गौ भक्तों का सम्लित प्रयासों के लिए आवाहन कर रहा है। आओ सब मिलकर इस यज्ञ में आहुति डालें। सभी देश भक्त " हर हर गाय -घर घर गाय " का नारा बुलंद करें।



हर देश भक्त के ह्रदय में एक नारे को अंकित करने जा रहा हैं, भारतीय गौ रक्षा दल। वह नारा हैं 'हर हर गाय -घर घर गाय'। हमारी भारतीय सभ्यता दस हज़ार वर्षों पुरानी है। हमारें पूर्वजों ने ही संसार को मनुष्यता सिखाई। विज्ञानं का प्रारंभ हमारें ऋषियों ने ही किया था । पुराणिक काल में अनेक विज्ञानिक शोध हुए। जिन को आधार मान कर मनुष्य के लिए मानवीय मूल्यों का निधारण किया गया। तथा उनमें जीव हत्या को महा अपराध माना गया। तथा उसमे भी दूध देने वाले पशु की हत्या घोर अपराध मानी गयी। गाय पे हुए शोधों के कारण भारतीय जन-मानस ने गाय को गौ माता कह कर पूजना प्रारंभ किया। जो करूर मानव गौ मॉस खाते रहे उन्हें दानव अथवा राक्षस की संज्ञा दी गयी। इन ही दैत्यों का विनाश भरत खंड के बहुत बड़े भू-भाग से मर्यादा पुरषोतम श्री राम चन्द्र जी ने किया। और जब राम राज्य का उदय हुआ तो हिमालय से लेके लंका,महिलाका , बाली, इत्यादि सहस्त्रों द्वीपों और समस्त भरत खंड में गौ हत्या पर निषेद लगा। योगेश्वर श्री कृष्ण ने भी एक ऊँगली पर पहाड़ उठा कर गौ रक्षा की। गौ रक्षा का आदर्श स्थापित करने के कारण ही उन्हें गोविन्द कहा जाता हैं। समय समय पर आस्था के क्षितिज पर भारत वर्ष में अनेक क्रांतियाँ हुई। तथागत बुध , वर्धमान महावीर, आदि गुरु शंकराचार्य , रामानुजाचार्य , माधवाचार्य ,इत्यादि इत्यादि अनेक महापुरुषों ने भांति भांति की साधना - उपासना पद्धतियाँ भारत के जन मानस को सिखाई। उन सभी पंथो , मतों , सम्प्रदायों में गौ माता को पूजनीय और अराधनिये माना गया। कालांतर में इस भरत खंड पर अनेक आकर्मण हुए। यवन, शक, हूण,अहोम और मनक्या,इत्यादि ने जब यहाँ शासन करना चाहा तो 

स्थानीय परम्पराओं को अपनाया तथा गौ हत्या पर निषेद लगाया। फिर अरब आए ,तुर्क आए , अपनी सत्ता भारत पर स्थिर नहीं कर पाए। पठानो ने उन्हें हटा कर अपना शासन दिल्ली पर लाया और गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाया। फिर मुग़लों का आकर्मण हुआ। बाबर ने मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की। उसकी समझ में भी बात आई और उसने अपने बेटे हुमायूँ से कहा की यदि तुम्हें भारत पर राज करना हैं, तो गौ हत्या पर प्रतिबंध रखना पड़ेगा। इस का उलेख बाबर द्वारा रचित पुस्तक बाबरनामा में मिलता हैं। जब मुग़ल काल में क्रूरता की अति हो गयी तब भी गौ हत्या पर प्रतिबंध रहा। औरंगजेब जैसा महानीच भी सत्ता में रहते हुए भी , कभी गौ हत्या से प्रतिबंध नहीं हटा पाया।

भारत के अंतिम सम्राट बहादुर शाह ज़फर 2 ने भी अपने अंतिम फरमान में कहा की गौ हत्या भारत वर्ष में नहीं होनी चाहिए। परन्तु यह क्या हो रहा हैं, मोदी शासन में भारत बीफ निर्यात में प्रथम राष्ट्र का स्तर पा चूका हैं। हमारी इस 'पवित्र भारत भूमि में' प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों की संख्या में गाय और बैल काटे जाते हैं और हम इसके विरोध में अँगुली भी ना उठायें। 

समय समय पर गौ रक्षा हेतु कई अभियान चलते रहें हैं। क्या हिमाचल क्या केरल, हर प्रान्त में गौ रक्षा हेतु अनेक छोटे बड़े संग़ठन बने हुए हैं। पर हम गौ भक्तों को सफलता नहीं मिल रही है। भारतीय गौ रक्षा दल समस्त गौ पुत्रों एवं गौ भक्तों का सम्लित प्रयासों के लिए आवाहन कर रहा है। आओ सब मिलकर इस यज्ञ में आहुति डालें। सभी देश भक्त " हर हर गाय -घर घर गाय " का नारा बुलंद करें। 
हमारा अभियान सर्वप्रथम दिल्ली से प्रारम्भ किया जायेगा। देश की राजधानी होने के कारण ये आवश्यक हैं कि सारे देश में गौ रक्षा का सन्देश दिल्ली से ही दिया जाए। इस के लिए हम सरकार तथा उपराज्यपाल से यह मांग करेंगे की दिल्ली में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगे।

दूसरें चरण में हम केंद्र सरकार से मांग करेंगे की गौ हत्या को भारतीय दंड सहिंता की धारा 302 के अंतर्गत लाया जाए। तथा गाय को राष्ट्र माता का सम्मान दिया जाये।

देश भक्त हैं तो " हर हर गाय -घर घर गाय " का नारा बुलंद करें





देश भक्त हैं तो " हर हर गाय -घर घर गाय " का नारा बुलंद करें। गाय पालन के फायदे बताएं , आज ज़ी न्यूज़ ने भी एक बड़ी पहल की है 

गाय के दूध, दही, घी, गौबर रस, गौ-मूत्र का एक निश्चित अनुपात में मिश्रण पंचगव्य कहलाता है। मानव शरीर का ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका पंचगव्य से उपचार नहीं हो सकता। पंचगव्य से पापजनित रोग भी नष्ट हो जाते है। यदि उपर्युक्त सूत्रों को एक बार में अथवा एक या दो करके दूरदर्शन आदि प्रसार माध्यमांे के द्वारा लिखा हुआ दिखाया जायें और अन्य विज्ञापनो की तरह दिन में अनेक बार और कुछ लम्बे समय तक विज्ञापनों को जारी रखा जायें तो थोड़े समय में देश में गौ क्रान्ती हो सकती है और यदि गो-दुग्ध सेवन के प्रचार को अधिक महत्त्व दिया जायें तो गौ वध तो अपने आप ही धीरे-धीरे बंद हो जायेंगा।
हमारी इस 'पवित्र भारत भूमि में' प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों की संख्या में गाय और बैल काटे जाते हैं और हम इसके विरोध में अँगुली भी ना उठायें

ये सिर्फ गौ हत्या नहीं ,एक देवी कि हत्या है ,राष्ट्र माता की हत्या है -पवन पंडित

वेदों में ‘गोघ्न‘ या गायों के वध के संदर्भ हैं और गाय का मांस परोसने वाले को महापापी और अति दुष्ट कहा गया है
वेदों में गाय को अघन्या या अदिती – अर्थात् कभी न मारने योग्य कहा गया है और गोहत्यारे के लिए अत्यंत कठोर दण्ड के विधान भी है
गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्‍या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है।

गाय का दूध बहुत ही पौष्टिक होता है। यह बीमारों और बच्चों के लिए बेहद उपयोगी आहार माना जाता है। इसके अलावा दूध से कई तरह के पकवान बनते हैं। दूध से दही, पनीर, मक्खन और घी भी बनाता है। गाय का घी और गोमूत्र अनेक आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम भी काम आता है। गाय का गोबर फसलों के लिए सबसे उत्तम खाद है। गाय के मरने के बाद उसका चमड़ा, हड्डियां व सींग सहित सभी अंग किसी न किसी काम आते हैं। फिर भी गौ माता की हत्या क्यूँ

अन्य पशुओं की तुलना में गाय का दूध बहुत उपयोगी होता है। बच्चों को विशेष तौर पर गाय का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है क्योंकि भैंस का दूध जहां सुस्ती लाता है, वहीं गाय का दूध बच्चों में चंचलता बनाए रखता है। माना जाता है कि भैंस का बच्चा (पाड़ा) दूध पीने के बाद सो जाता है, जबकि गाय का बछड़ा अपनी मां का दूध पीने के बाद उछल-कूद करता है।

गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी होती है वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग काम आता है। गाय का चमड़ा, सींग, खुर से दैनिक जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है। गाय की हड्‍डियों से तैयार खाद खेती के काम आती है। फिर भी गौ माता की हत्या क्यूँ

भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का निवास है। यही कारण है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है।

प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। युद्ध के दौरान स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था। जिस राज्य में जितनी गायें होती थीं उसको उतना ही सम्पन्न माना जाता है। कृष्ण के गाय प्रेम को भला कौन नहीं जानता। इसी कारण उनका एक नाम गोपाल भी है।

कुल मिलाकर गाय का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है। गाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तो आज भी रीढ़ है। दुर्भाग्य से शहरों में जिस तरह पॉलिथिन का उपयोग किया जाता है और उसे फेंक दिया जाता है, उसे खाकर गायों की असमय मौत हो जाती है। इस दिशा में सभी को गंभीरता से विचार करना होगा ताकि हमारी 'आस्था' और 'अर्थव्यवस्था' के प्रतीक गोवंश को बचाया जा सके। आओ आज एक प्रण लें और गऊ माता की रक्षा के उन पापियों से सब मिलकर लड़ें ,

Thursday 6 February 2014

IFAA Campaign, Against Piracy & Dirty Cinema


Some Moment of IFAA Film Association Programmes


Event of First Edition Launching of Bollywood Dreams magazine in 2011 March 23